नई दिल्ली: कोरोना के बाद महंगाई (Inflation) तेजी से बढ़ी है। खास कर खाने-पीने क चीजों और अनाज की कीमतें खूब चढ़ी हैं। लेकिन इन्हीं चीजों से बनने वाले शराब (Liquor) की कीमतें बीते कई सालों से स्थिर हैं। ऐसे में प्रीमियम शराब (Premium Liquor) बनाने वाली कंपनियां परेशान हैं। इनका कहना है कि जब शराब उद्योग में काम आने वाली लगभग हर चीज महंगी हो रही है तो फाइनल प्रोडक्ट का दाम नहीं बढ़ाना उद्योग के साथ ज्यादती है। शराब उद्योग से मिली जानकारी के अनुसार ओडिशा में साल 2014 से ही दाम नहीं बढ़ा है।
हर चीज की बढ़ गई है कीमत
प्रीमियम अल्कोहल व्रेवरीज क्षेत्र premium AlcoBev sector की संस्था इंटरनेशनल स्पिरिट्स एण्ड वाईन्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया International Spirits and Wines Association of India (ISWAI) का कहना है कि शराब बनाने में काम आने वाली हर चीज की कीमत बढ़ गई है। शराब उद्योग का प्रमुख रॉ मैटेरियल एक्स्ट्रा न्यूट्रल एल्कॉहल है। इसकी कीमतें ही एक साल में ही 12 फीसदी बढ़ गई है। शराब को जिन कांच की बोतलों में पैक किया जाता है, वह भी करीब 25 फीसदी महंगी हो गई है। यहां तक कि मोनो कार्टन भी 19 फीसदी महंगा हो गया है। ऐसे में प्रोड्यूसर क्या करे?
राहत दे सरकार
आईएसडब्ल्यूएआई की सीईओ नीता कपूर का कहना है कि सरकार राहत दे। उन्होंने राजस्थान का उल्लेख करते हुए बताया कि वहां शराब के दाम महंगाई के हिसाब से नहीं बढ़ रहे हैं। यूं तो राज्य सरकार ने साल 2021-22 में महंगाई के चलते कुछ राहत दी थी। लेकिन वह पर्याप्त नहीं है। अब तो स्थिति ज्यादा बिगड़ गई है। एक साल में ही जौ ही 46 फीसदी महंगी हो गई है। शराब की बोतलें जिस गत्ते के बॉक्स या कार्टन में पैक जी जाती है, उसके दाम भी पांच फीसदी बढ़ गए हैं। यहां तक कि शराब की बोतल पर लगाने जाने वाले लेबल तक महंगे हो गए हैं। इसलिए चालू वर्ष 2022-23 में बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि व्यावहारिक समाधान तो यह है कि प्रोडक्ट का मूल्य इनपुट कॉस्ट की कीमतों से जोड़ दिया जाए।
जानिए कच्चे माल की कीमतों में एक साल में कितनी हुई बढ़ोतरी
इनपुट कितनी बढ़ी महंगाई
ईएनए 12%
जौ 46.2%
कांच 24.9%
मोनो कार्टन 19%
बाहरी कार्टन 5%
लेबल 12%
क्लोजर 12%
कैसे तय होती है शराब की कीमत
कंफेडरेशन ऑफ इंडियन अल्कोहलिक वेवरेज कंपनीज (CIABC) के महानिदेशक विनोद गिरी बताते हैं कि भारत में शराब की कीमतें राज्य सरकार तय करती हैं। अलग अलग राज्य में कीमत तय करने का फार्मूला भिन्न भिन्न है। मुख्य रूप से तीन-चार फार्मूला चलन में है। पहला फार्मूला तो ओपन मार्केट का है। इसमें कंपनियां दाम खुद तय करती हैं। सरकार को सिर्फ सूचना देनी होती है ताकि वह उसी हिसाब से एक्साइज ड्यूटी वसूले। महाराष्ट्र और गोवा में इसी तरह का सिस्टम है। दूसरा तरीका ऑक्शन सिस्टम है। इसमें कंपनियां ठेका उठाती हैं और अपने हिसाब से दाम तय करती हैं। हरियाणा और पंजाब में ऐसा ही हो रहा है। तीसरा कारपोरेट मेथड का है। इसमें राज्य सरकार दाम तय करती है और उस राज्य में शराब की हर एक बोतल सरकारी कंपनी के जरिए बेची जाती है। ओडिशा और राजस्थान समेत देश के दो तिहाई राज्यों में इसी तरीके से दाम तय की जाती है। दिल्ली में थोड़ा अलग हाईब्रिड मॉडल से काम होता है।
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